मृत्य अटल है, इससे कोई नहीं बच सकता है : पाराशर

श्रद्धालु जो भी देवी-देवता का व्रत रखते हैं उस देवी-देवता का पूजन, भजन भी करना चाहिए। मात्र भूखे रह कर व्रत नहीं रखा जाता है। व्रत को विधि-विधान के साथ नियम पूर्वक रखा जाए तो व्रत का फल प्राप्त होता है। व्रत के दिन रात्रि जागरण कर धर्म कार्य किए जाने का भी विधान बताया गा है। धर्म के अनुसार जीवन को जीना चाहिए। यह बात उन्होंने कहा कि मृत्यु अटल है, इसे कोई नहीं रोक सकता है। जो अटल है उससे विचलित नहीं होना चाहिए। मृत्यु से कभी भी विचलित नहीं होना चाहिए। मृत्य होना शाश्वत सत्य है। प्रत्येक व्यक्ति को धर्म के अनुसार आचरण करना चाहिए। सभी को परमात्मा ने भेजा है। धर्म कार्य करने के लिए बसुंधरा पर भेजा गया है। श्री पाराशर ने कहा कि धर्म के अनुसार सभी को चलना चाहिए। महापुरुषों साधु-संतों, महात्माओं का सत्संग भी करना चाहिए। सत्संग करने से जीवन में समरसता का भाव उत्पन्न होता है। अध्यात्म के प्रति चेतना जाग्रत होती है। श्री पाराशर ने कहा कि उन्होंने कहा जीवन में यदि ईश्वर पर विश्वास करते तो बहुत सारी समस्याओं का समाधान जाता है। जो परमपिता परमात्मा में विश्वास के साथ उनके चरणों में समर्पित हो जाते हैं। मुक्ति, युक्ति उनके हाथ में आ जाती है। ईश्वर के प्रति आस्था होकर चलेंगे तो जिंदगी आसानी से कट जाएगी। उन्होंने कहा कि कबीरदासजी ने सचेत करते हुए कहा था कि आकाश और पृथ्वी ये चक्की के पाट जो निरंतर चलते हैं, जिसके मध्य में जीवन रूपी कनक पिस रही है, इससे कोई बच नहीं पाया है। बचने का मात्र एक ही उपाय है जैसा कि जो कनक कील के सहारे लग जाती है। उसका बाल भी बांका नहीं होता। चाहे चक्की कितनी भी न चले।


 पाराशर ने कहा जब ज्ञान मार्ग से व्यक्ति भटक जाए तो उसका जीवन निरर्थक बन जाता है। भगवान कृष्ण ने कहा कि मृत्यु के बाद आदमी को दूसरा जीवन जीवन संभव है। लेकिन चरित्र मानव की ऐसी जीवन पूंजी है कि यदि उस पर आंच आ जाए तो उसे दुबारा वापस लाना संभव नहीं है। चरित्र का निर्माण करने में सालों साल लग जाते हैं।


उन्होंने कहा कि समाज में चरित्र चला जाए तो समझो सब कुछ चला गया। उन्होंने कहा कि भक्ति के बेटे पल-पल मर रहे थे। भक्ति के बेटों का नाम ज्ञान और भक्ति था। ज्ञान विवेक के बिना नहीं बढ़ता। श्री शास्त्री ने कहा नारद जी ने परमार्थ हाथ में लिया। नारद जी को हजारों साधुओं ने ठुकराया, तब सनतकुमार नारद से कहते है कि धन्य हैं आप जो हमारी कुटिया में पधारे।